लेखनी प्रतियोगिता -21-Sep-2022 विरह गीत

 विरह गीत

नहीं नहीं मुझको नहीं करना, 
थोड़ा सा भी प्यार बावले 
मन कोमल है नहीं है पत्थर ,
धोखे खाकर संभल सांवले।

यादों की बस एक गठरिया, 
मन में बसती वही डगरिया, 
राह खड़े थे पेड़ चिढ़ाते, 
बादल गड़ गड़ थे चिल्लाते,
 भीड़भाड़ बिच काया रमती, 
तनहाई ने छवि उभरती, 
कभी मिले थे हम इस जग में,
 सोच ना पाऊं अरे बावले,
मन कोमल है नहीं है पत्थर, 
धोखे खाकर संभल सांवले।

यह तो सच है अंत सांस तक, 
दबी रहेगी याद मिलन की,
 'अलका' कहे  चेहरा नूरानी, 
पल-पल छेड़ करें शैतानी, 
पर अब दर्द गीत ना कहना, 
अब मिलने की जिद ना करना, 
नयन मूंदने पर ख्वाबों में ,
आ नहीं सताना  अरे बावले,
 मन कोमल है नहीं है पत्थर 
ठोकर खाकर संभल सांवले।

नहीं नहीं मुझको नहीं करना, 
थोड़ा सा भी प्यार बावले ,
मन कोमल है नहीं है पत्थर, 
धोखे खाकर संभल सांंवले

अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी' 
लखनऊ उत्तर प्रदेश।
स्व रचित मौलिक व अप्रकाशित
@सर्वाधिकार सुरक्षित

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10 Comments

Gunjan Kamal

23-Sep-2022 09:42 AM

शानदार

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Raziya bano

22-Sep-2022 07:15 PM

Nice

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Swati chourasia

22-Sep-2022 04:54 PM

वाह बहुत ही बेहतरीन रचना 👌👌👌👌👌👌

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